गुरु नाभा दास जी का इतिहास

गुरु नाभा दास जी का परिचय
श्री गुरु नाभा दास एक महान संतधर्मशास्त्री, पवित्र शास्त्र और भगत माल के धार्मिक लेखक थे। इस पवित्र शास्त्र में नाभा दास ने सतयुग से कलयुग तक लगभग हर संत का जीवन इतिहास में लिखा था। वह रिषि बाल्मीकि महाराज जी जैसे पवित्र लेखक थे, जिन्होंने रामायण लिखी थी। रिषि ब्यास महाराज जी जिन्होंने गीता लिखी थी और गोस्वामी तुलसी दास जी जिन्होंने रामायण का नया संस्करण लिखा था।
गुरु नाभा दास जी का जनम और स्थान
गुरु नाभा दास जी का जन्म 8 अप्रैल, 1537 में आंद्रा परदेश के जिला खम्मम में पवित्र गोदावरी नदी के तट पर भद्राचलम गांव में हुआ था। उनकी माता जी का नाम जानकी देवी जी और पिता रामदास जी था । जिस को अब रामदास्सू के नाम से जाना जाता है। गुरु नाभा दास जी माहाशा, डूम, डुमना समुदाय से संबंधित थे, जिनको अब नाभादसिया के नाम से जाना जाता है।

गुरु नाभा दास जी के पिता
गुरु नाभा दास जी के पिता का काम बेंत की टोकरियाँ बनाना था और वे सभी वाद्य यंत्रों के महान कलाकार थे।वे भगवान राम के प्रबल भक्त भी थे, क्योंकि भगवान राम का मंदिर उनके गाँव भद्राचलम में स्थित था, जिसे अब रामभद्राचलम के नाम से जाना जाता है। लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी इसलिए गांव के लोग निःसंतान होने का ताना मारते थे। बाद में उन्होंने भगवान राम से प्रार्थना की कि वे उन्हें एक पुत्र प्रदान करें। तब कई महीनों के बाद उस घर में एक पुत्र का जन्म हुआ। तब गुरु नाभा दास जी को नारायण दास कहा जाता था। वह भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। वह गांव में रहते थे और राम मंदिर में पूजा करते थे। वह अपने दोस्तों के साथ पवित्र नदी गोदावरी के तट पर खेलते थे और भगवान से आशीर्वाद के साथ रेत के लड्डू को असली बनाकर आपने दोस्तों के साथ आदान-प्रदान करते थे। गुरु नाभा दास जी के पिता की मृत्यु हो गई थी ,तब नाभा दास पाँच वर्ष के थे ।नारायण दास पांच बर्ष तक नेत्रहीन रहे।
गांव में आकाल
कुछ वर्षों बाद गांव में बहुत भयानक आकाल पड़ा, जिससे कि गांवों वाले गांव छोड़कर जाने लगे।गुरु नाभा दास जी की माता (जानकी देवी) भी नाभा दास जी को लेकर गांव छोड़कर चले गए। जाते-जाते वो दोनों एक जंगल में आ पहुंचे। उसकी मां ने नाभा दास जी से पूछा क्या तुम्हें भुख लगी है, नाभा दास जी बोले, जी मां।
भोजन की तलाश
उसकी माता ने नाभा दास जी को विशराम करने को कहा, मैं तुम्हारे लिए भोजन और जल लेके आती हुं, तुम जहां पे रहना। गुरु नाभा दास जी बोले, ठीक है मां। उसकी माता भोजन की तलाश में चल पड़े। जब बहुत समय हो गया तो नाभा दास जी चिंतित होने लगे और मां को ढुंढने चल पड़े। फिर कोसों दूर चलकर एक पेड़ के नीचे बैठ गए और राम का नाम जपने लगे।

गुरु अग्रदास और कीलदास का परिचय
कुछ समय बाद पवित्र संत श्री अगरदास जी और कीलदास दोनों राम भद्राचलम पहाड़ियों और जंगलों के पास से गुजर रहे थे। उन्होंने नारायण दास को एक पेड़ के नीचे देखा, और उसके पास आए और उससे पूछा, तुम यहाँ क्यों बैठे हो?"। नारायण ने उनसे कहा, मैं अपनी मां की प्रतीक्षा कर रहा हूं। और गांव में जो हूआ वो सब बताया। गुरु अग्रदास जी बहुत दुखी हुए।
गुरु अग्रदास से मिलन
गुरु कीलदास जी ने शक्ति से गुरु नाभा दास जी की माता जी को देखा और नाभा दास जी को बताया कि उनकी माता का निधन हो गया है। जिससे सुनकर नाभा दास जी बहुत दुखी हुए। फिर गुरु कीलदास जी ने कमंडल से जल लिया और नाभा दास जी के आंखों पर छिड़का और जल पिलाया। जिससे नाभा दास जी नेत्र ठीक हो गए और दोनों गुरु का आशिर्वाद प्राप्त किया।फिर गुरु अग्रदास जी ने दुबारा पूछा, तुम कौन हो बालक? तो नाभा दास जी ने बताया, मैं भगवान के आशीर्वाद से पांच तत्वों से बना हूं। अब इस संसार में मेरा कोई नहीं है। मेरा पालनहार खुद नारायण है। उसका आध्यात्मिक उत्तर सुनकर गुरु अग्रदास जी चकित रह गए। वे बहुत खुश हुए और उससे पूछा, क्या आप हमारे साथ मंदिर जाना चाहते हैं। नाभा दास जी ने कहा, हां गुरु जी। फिर वे उसे जयपुर के घाल्टा धाम में मंदिर में ले आए। तब गुरु अगरदास जी ने उन्हें कर्तव्यपरायणता प्रदान की। आप सत्संग सुनने के लिए यहां आने वाले तीर्थयात्रियों की सेवा करेंगे और जब मैं भक्तों के लिए सत्संग हॉल में उपदेश और शिक्षा दे रहा होता हूं तो आप हाथ में पंखा भी चलाएंगे।
गुरु अग्रदास के भगत
एक दिन गुरु अग्रदास सत्संग पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे थे क्योंकि उनके एक शिष्य (हरि दास) जो समुद्र के रास्ते जहाज के माध्यम से एक व्यापारी थे। उनका जहाज चक्रवात में डूब रहा था। उसने अपने गुरु अग्रदास के सामने अपने जहाज को बचाने के लिए प्रार्थना कर रहे थे, तो गुरु अग्रदास जी का ध्यान उस जहाज की ओर था। नारायण दास अपने गुरु की ओर देख रहे थे कि वे सत्संग में ध्यान क्यों नहीं लगा रहे है। गुरु नाभा दास जी ने उन्होंने आंतरिक ज्ञान के साथ देखा। तो गुरु नाभा दास जी ने बहुत तेज गति से जहाज को बचाने के लिए पंखा चलाया। नारायणदास ने अपने गुरु से कहा, आप सत्संग के जहाज को चक्रवात से मुक्त कर दें। गुरु ने आँखें खोलीं और कहा, तुमने मेरी आंतरिक भावना को कैसे समझा, तुम महान संत हो, अब तुम्हारा नाम नाभा दास होगा ।

सतयुग से कलयुग तक का इतिहास
गुरु अग्रदास जी ने गुरु नाभा दास जी से कहा, "अब आप सत्ययुग से लेकर कलियुग तक सभी भक्तों का इतिहास लिखेंगे।" यह सुनकर गुरु नाभा दास जी बोले, "मैं यह कार्य कैसे कर सकता हूँ? "तब गुरु अग्रदास जी ने उत्तर दिया, "तुम स्वयं ब्रह्मा के अवतार हो। जिस भी भक्त के बारे में तुम सोचोगे, उसका इतिहास तुम्हारे मन में स्वतः प्रकट हो जाएगा।" गुरु नाभा दास जी ने गुरु अग्रदास जी और गुरु कीलदास जी का आशीर्वाद लिया। अगले दिन, जब वे भक्तों का इतिहास लिखने लगे, तो गुरु अग्रदास जी ने उन्हें रोकते हुए कहा, "रुको नाभा दास! सबसे पहले अपने जीवन का परिचय दो, उसके बाद भक्तों के इतिहास को लिखना प्रारंभ करो।" फिर गुरु अग्रदास जी बोले, "भक्तों का इतिहास तो लिखा जाएगा, लेकिन यह भी आवश्यक है कि इतिहास लिखने वाला कौन है, यह लोगों को पहले पता चले।" गुरु नाभा दास जी ने गुरु अग्रदास जी की आज्ञा का पालन किया। पहले उन्होंने अपना परिचय दिया और फिर सभी भक्तों के इतिहास को एक ग्रंथ में संकलित किया।इस महान ग्रंथ का नाम "भक्तमाल" रखा गया।
वनारस की यात्रा
तब उन्होंने अपने गुरु से वरदान लेकर आंतरिक ज्ञान से कई पवित्र संतों का जीवन इतिहास लिखा था। गुरु अगरदास ने अपने बड़े पवित्र संत कीलदास जिसने नाभा दास द्वारा कई संतों का जीवन इतिहास लिखा था।कीलदास बहुत खुश हुए और उन्होंने ने कहा, आप महान पवित्र लेखक हैं, और साहित्य के डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के भी योग्य हैं। हमें यहां एक धार्मिक समारोह की व्यवस्था करनी चाहिए और सभी पवित्र संतों को अपनी धार्मिक उपलब्धियों पर आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित करना चाहिए। उन्होंने कहा आपको गंगा में पवित्र डुबकी लगाने के लिए वाराणसी जाना चाहिए।

गुरु नाभा दास जी के शब्द
उन्होंने सभी पवित्र संतों को भी आमंत्रित किया। जब वह वाराणसी जा रहे थे तो रास्ते में अयोध्या शहर था ।जहां भगवान राम का मंदिर स्थित था। वह वहां कुछ दिनों के लिए रुके। भगवान राम मंदिर जहां धार्मिक कार्यक्रम चल रहा था। सभी संत कुछ भजन गा रहे थे। जब मंदिर के पुजारी ने नाभा दास को किसी भी भजन का प्रचार करने के लिए कहा तो अन्य रिषियों ने संत समुदाय से संबंधित नहीं होने पर आपत्ति जताई और कहा कि आप उन्हें कैसे अनुमति दे सकते हैं? पुजारी ने उनसे कहा कि अगर कोई व्यक्ति भजन गाना चाहता है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। भजन शुरू करने से पहले नाभा दास जी ने कहा -:
जात न पूछिए साध की, पूछ लीजिए ज्ञान,
मोल करो कृपाण का, परे रहने दो मियां"।
पवित्र संतों ने धर्म और भगवान के ज्ञान के बारे में पूछा, गुरु नाभा दास जी ने कहा -:
भगत भक्ति भगवान गुरु चतुर नाम बाप एक,
इनके पद बंदन किए नसीन विगन अनेक
फिर गुरु नाभा दास जी ने बताया भक्त, भक्ति, गुरु, भगवान। वे समान वस्तुएँ हैं और आदरणीय मूर्तियाँ भी। जो उनकी पूजा करते हैं। उनकी समस्याओं का समाधान अपने आप हो जाता है।
गंगा में डुबकी
सब साधु व्यक्ति नाभा के बारे में अच्छी सोच रखने लगे। और कहने लगे भगवान से मिलने का एक अच्छा तरीका है। उनका धार्मिक उपदेश सुनकर सभी साधु-संत चकित रह गए। वे उसे आदर से बुलाने लगे। फिर नाभा दास जी वहां से जाने लगे तो पुजारी ने पूछा, आप कहां जा रहे हैं। गुरु नाभा दास जी बोले मैं पवित्र गंगा में डुबकी लगाने के लिए वाराणसी जा रहा हूं। मैंने सभी रिषियों और पवित्र संतों को घालटधाम आने के लिए आमंत्रित किया, जहां गुरु और भगवान के आशीर्वाद से मेरे द्वारा लिखे गए पवित्र ग्रंथ का विमोचन करने के लिए धार्मिक समारोह आयोजित किया जाएगा। सभी संतों ने उनके संदेश को स्वीकार किया और उनके धार्मिक कार्यों के लिए उन्हें बधाई भी दी और गुरु जी गंगा नदी वनारस की यात्रा में चल पड़े। फिर गंगा नदी में पहुंच कर वहां पे डुबकी लगाई।

डॉक्टरेट उपाधी 1585 में
तब सभी पवित्र संतों ने गुरु श्री अगरदास, श्री कीलदास के साथ पवित्र ग्रंथ का विमोचन किया और 1585 में इस ग्रंथ का नाम "भगतमाल" रखा । घालताधाम जयपुर में और नाभादास को साहित्य डॉक्टरेट की उपाधि भी दी गई। गोस्वामी श्री तुलसीदास, रिषि बम्मीकि जी महाराज, रिषि व्यास जी महाराज की भाँति अब आप गोस्वामी श्री नाभा दास महाराज के नाम से जाने जाएँगे। उन्होंने पवित्र ग्रंथ भी लिखे थे। इन पवित्र शास्त्रों में हमें भगवान के पास लाने के लिए भगतमाल में सतयुग से कलयुग में आने वाले अनेक संतों की जीवन कथा लिखी गई है।इस धार्मिक समारोह के अंत में श्री गुरु नाभदास पूरे भारत में धार्मिक यात्रा के लिए रवाना हुए। वह अपने माता-पिता के मंदिर और भगवान राम के मंदिर से आशीर्वाद लेने के लिए सबसे पहले पवित्र नदी गोदावरी के रामभद्राचलम तट पर अपने मूल गांव गए।
गुरु नाभा दास स्वर्ग लोक
वह ध्यानपुरधाम, पंडोरीधाम, दमतलधाम जाते हैं। गुरु नाभा दास जी पठानकोट, गुरदासपुर के रास्ते पंजाब आए थे। फिर जम्मू गए जहां उनका समुदाय अधिक रहता था। गुरु नाभा दास जी भारत के कई जगहों पर जा के ज्ञान का प्रचार किया। फिर गुरु नाभा दास जी जयपुर में घालटधाम में वापस आ गए। जहां पे गुरु नाभा दास जी जीवन, धर्म, भगवान और सतयुग से कलयुग तक के संतों का ज्ञान लोगों में प्रचार करते रहे। गुरु नाभा दास जी 1643 में स्वर्ग चले गए थे।तब गुरु नाभा दास जी की आयु 106 वर्ष थी।
जन्म उत्सव
आज भी गुरु नाभा दास जी हमारे दिलों में और इस धरती पर याद किए जाते हैं। क्योंकि उनका योगदान और बलिदान हमारे लिए नहीं बल्कि संपूर्ण लोगों के लिए है। खासकर हमारे समुदाय के लोगों को उनकी मूर्ति के प्रति सम्मान और आभार भी होना चाहिए। गुरु नाभा दास जी के लिए सभी लोग सम्मान हैं और वे भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए उनके योगदान और बलिदान के लिये उनको सत-सत नमन । इसलिए हमें उनकी जयंती 8 अप्रैल को आपके गांवों, शहरों में धार्मिक संस्कारों के साथ मनानी चाहिए और हमें एक पवित्र सौभा यात्रा निकालनी चाहिए।

गुरु नाभा दास जी का समुदाय
गुरु नाभा दास जी महाशा जाति से जाने जाते हैं। माहाशा जाति को पहले डुम-डुमना नाम से जाना जाता था। आज गुरु नाभा दास जी का जन्म उत्सव बहुत धुम-धाम से मनाया जाता है। 8 अप्रैल को गुरु नाभा दास जी के जन्म दिवस पर पुरे पंजाब में छुट्टी होती है। इस छुट्टी का ऐलान पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान जी ने 25 मार्च 2020 को किया था।
गुरु नाभा दास जी सबसे ज्यादा इन राज्यों में चर्चित है:- 1).punjab, 2).jammu, 3). rajasthan, 4). hariana, 5).delhi
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