Guru Nabha Dass Ji Ki Kahani

Guru Nabha Dass Story
नमस्कार दोस्तो स्वागत है आपका इस पेज में। दोस्तो गुरु नाभा दास बारे आपने शायद ही कम पढ़ा होगा, लेकिन आज मैं आपके लिए ऐसी ही एक अनसुनी कहानी लेकर आया हूं। अगर आप गुरु नाभा दास बारे जानना चाहते हैं तो आप नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके आप गुरु नाभा दास जी के इतिहास के बारे में जान सकते हैं। चलो दोस्तो कहानी को शुरू करते हैं।
1. गुरु की आराधना
गुरु नाभा दास जी रोज सुबह एक पेड़ के नीचे राम नाम का जाप करते जय श्री राम, जय श्री राम। उस वक्त गुरु नाभा दास की उम्र 5 वर्ष की थी और 5 साल की उम्र तक नेत्रहीन थे। गुरु जी को पहले सब लोग नारायण कहते थे। रोज मां को बिना बताए आते और पेड़ के नीचे बैठ कर राम नाम का जाप करने लग जाते। राम राम बोलते कब सुबह साम हो जाती उसे पता भी नहीं चलता था बस उसकी हर एक सांस में राम का नाम था।
2. मां की चिंता
एक दिन गुरु नाभा दास जी ऐसे ही एक पेड़ के नीचे राम नाम का जाप कर रहे थे। तब उनकी माता जानकी देवी आती है और कहती है, नारायण तुम जहां पे बैठे हो, सुबह से ना तुमने कुछ खाया है न पिया है। चलो घर। नारायण दास जी मस्कराते हैं और कहते हैं मां मेरा पेट तो भर गया ना अब मुझे भोजन की जरूरत है ना पानी की। राम नाम का जाप करते करते मुझे तो भूख नहीं लगती। नारायण दास की माता ये सब देखकर सोचने लगती है और मन ही मन कहती है कितने दिन हो गए, ना कुछ खाया फिर भी नारायण के चेहरे में इतनी चमक कैसे। ये सब सोच कर वो मन ही मन दुखी हो जाती है। और वो जहां से चली जाती है।
3. राम की कृपा
शाम का वक्त हो गया नारायण भी घर आ रहे थे। नारायण जी ऐसे चल रहे जैसे राम आगे और नारायण जी पीछे चल रहे थे। ऐसा लगता है जैसे वो नेतरहीन हो नहीं सकते। रास्ते में 2 लोग उनके बारे में बात करने लगते हैं। एक बोलता है, देखो, ना नेत्र है और ना ही कोई सहारा है फिर भी देखो कैसे एक साधारण मनुष की तरह चल रहे हैं। दूसरा बोलता है इसे तो मैं भी कर सकता हूं। आपनी आंखें बंद करके तो मैं भी जा सकता हूं। पहले वाला बोलता है तुम जा तो सकते लेकिन नारायण जैसे नहीं। ऐसा लगता है जैसे प्रभु सह्यम उसका हाथ पकड़ कर उसको मार्ग दिखाते हैं। दूसरा वाला फिर से बोलता रुको तुम उसकी ज्यादा तारीफ मत करो मुझे देखो अभी तुझे मैं करके दिखाता हूं। वो जैसे आंखें बंद करके चलने लगता है। थोड़ी दूर जा के वो एक पेड़ से टकरा जाता है और ज्यादा चोट लगने के कारण उसे आपनी मूर्खता पर पछताप होता है।
4. नदी का चमत्कार
अगली सुबह नारायण के दोस्त उनके घर आ जाते हैं और नारायण जी को खेलने को कहते हैं। नारायण जी और उनके दोस्त गोदावरी नदी के पास खेलने चले जाते हैं। सभी दोस्त नहाने के लिए चले जाते हैं और नारायण जी रेत के साथ खेलने लगते हैं। नारायण जी रेत के लड्डू बना रहे थे और राम का नाम जाप कर रहे थे। एक दोस्त नारायण के पास आता है और लड्डू को देख कर हैरान हो जाता है। क्योंकि वो रेत के लड्डू मोती चूर के लड्डू में बदलते जा रहे थे। वो बाकी दोस्तों को बुलाता है। जब सभी दोस्त ये सब देखते हैं तो बहुत हैरान हो जाते हैं।
5. लड्डू का रहस्य
नारायण दास जी घर आते ही सब लोगों को देखते हैं। उनकी मां कहती है ये गांव वाले तुम्हारी वजह से आए हैं। नारायण के दोस्त बताते हैं कि उन्होंने नारायण को रेत के लड्डू को मोतीचूर के लड्डू में बदलते देखा है। नारायण दास जी मस्कराते हैं और कहते हैं, मां, मैं तो नेतरहीन हूं। मैं कैसे देख सकता हूं। नारायण की मां नारायण को गले लगाती है और रोने लगती है। और सबको बोलती है तुम सब झूठ बोल रहे हो और जाओ जहां से।
6. गांव का सत्यापन
नारायण का दूसरा दोस्त कहता है कि हमने देखा है। अगर आपको यकीन नहीं है तो चलो मेरे साथ गोदावरी नदी के पास। आपको अभी भी वहां पे लड्डू का ढेर मिलेगा। नारायण की माता और गांववाले गोदावरी नदी के पास जाते हैं। वहां देखते हैं कि मोतीचूर के लड्डू का बड़ा सा ढेर लगा है। ये सब देखकर सब लोग हैरान हो जाते हैं।
7. क्षमा और दान
नारायण दास मुस्कराते हैं और सबको माफ कर देते हैं। फिर रेत के लड्डू को मोतीचूर के लड्डू में बदलकर सबको वितरित करते हैं।
दोस्तो नारायण दास जी, गुरु नाभा दास जी के बचपन का नाम था। बाद में उनका नाम गुरु नाभा दास जी रख दिया गया। दोस्तो, गुरु नाभा दास जी की ये कहानी आपको कैसी लगी? कमेंट करके जरूर बताना। धन्यवाद।
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